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वसन्त पंचमी का शौर्य, मत चुको चौहान


सोनो‌ जमुई संवाददाता चंद्रदेव बरनवाल की रिपोर्ट

  • ( चार बांस , चौबीस गज , अंगुल अष्ट प्रमाण‌ , ता उपर सुल्तान है‌ चूको मत चौहान )

बसंत पंचमी का दिन हमें हिन्द शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है । उन्होंने विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया , पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा । वह उन्हें अपने साथ बंदी बनाकर काबुल अफगानिस्तान ले गया और वहाँ उनकी आंखें फोड़ दीं । पृथ्वीराज का राजकवि चन्द्रवरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा । वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई । चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण यानि आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं , यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे को भेदने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं । इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया गया । इधर पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है । निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया । चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवों को निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए । चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे , अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया । इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया । चार बांस , चौबीस गज , अंगुल अष्ट प्रमाण ।

ता ऊपर सुल्तान है , चूको मत चौहान । अर्थात चार बांस , चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है , इसलिए चौहान चूकना नहीं , अपने लक्ष्य को हासिल करो । इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का

आंकलन हो गया । तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं , इसलिए आप इन्हें आदेश दें , तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे । इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया , पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया । गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए । चारों तरफ भगदड़ और हा-हाकार मच गया , इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये । आत्म बलिदान की यह घटना सन 1192 ई० बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी ।

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