नवरात्र में कलश स्थापना का महत्व
वैशाली: राघोपुर हिंदू धर्म में पूजा पाठ और किसी धार्मिक अनुष्ठान में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कलश को सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है। बिना क्लच के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है। हर वर्ष आश्विन मां के नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि कलश स्थापना की जाती है। इसलिए नवरात्रि पर मां दुर्गा का पूजा करते समय माता की प्रतिमा के सामने कलश की स्थापना करनी चाहिए। देवी दुर्गा की पूजा में कलश स्थापना से संबंधित हमारे पुराणों मे मान्यता है कि जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रूप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा के पहले कलश की पूजा करते हैं । पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगाजल से शुद्ध किया जाता हैं । ,,फिर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। कलर्स को 5 तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दुर्वा आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की बेदी बनाई जाती है। और उसमें जो बोया जाता है। जौ बोने की परंपरा धन धन देने वाली अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो पूजा स्थल के बीचो बीच स्थापित करते हैं। और मां दुर्गा का सिंगार, रोली, चंदन,अक्षत, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, आभूषण, साड़ी और सुहाग से करते हैं ।पूजा स्थान में एक अखंड दीप जलाया जाता है। जिससे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना के बाद गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते हैं। जिसके बाद 9 दिनों का व्रत का शुरुआत हो जाता है। माता में श्रद्धा और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत से लोग 9 दिनों तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें मां दुर्गा के समान माना जाता है श्रद्धा से भोजन कराया जाता है। और दसवें दिन कन्या पूजन के बाद उपवास खोलते हैं । कलश विश्व ब्रह्मांड का, ब्रह्म का, भू पिंड का प्रतीक है । इसे शांति और सुरजन का संदेशवाहक कहा जाता है। संपूर्ण देवता कलश रूपी पिंड या ब्रह्मांड में व्यशिष्ठ या समाशिष्ट मैं एक साथ समाए हुए हैं । वह एक हैं और एक ही सुबंधित के हैं। बहुदेववाद वस्तुतः एक देवा बाद का ही रूप है। एक माध्यम में एक ही केंद्र में समाज देवताओं को देखने के लिए कलश की स्थापना की जाती है । कलाश को सभी देवी शक्तियों, तीर्थ स्थानों का संयुक्त प्रतीक मानकर उसे स्थापित एवं पूजन किया जाता है। वेदोक्त मंत्र के अनुसार कलश के मुख में विष्णु का निवास है । उनके कंठ में रुद्र का तथा मूल में ब्रह्मा स्थित है। कलर्स के मध्य में सभी मात्री शक्तियां निवास करती है। कलश में समस्त सागर, शप्त दीपों सहित पृथ्वी, गायत्री, सावित्री, शांति कारक तत्व, चारों वेद, आदित्य देव, विश्व देव, सभी पितृ देव एक साथ निवास करते हैं। कलश की पूजा मात्र से एक साथ सभी प्रसन्न होकर यज्ञ कर्म को सुचारू रूप से संचालित करने की शक्ति प्रदान करते है। और निविधन्यता यज्ञ कर्म को समाप्त करवा कर प्रसन्नता पूर्वक आशीर्वाद देते हैं। कलश में जल भरा रहता है इसका मूल भाव या है कि हमारा मन भी जल की तरह शीतल, स्वच्छ एवं निर्मल बना रहे । हमारे शरीर रूपी जिस पात्र हमेशा श्रद्धा, संवेदना, तरलता एवं सरलता से लबालब भरे रहें। इसमें क्रोध, मोह, ईर्ष्या, घृणा आदि की भावनाएं पनपने न पाए। अगर बन पर भी तो जल की शीतलता से शांत होकर घुल मिलकर निकल जाएगा। कलर्स के ऊपर तमपत्र होता है जिसके ऊपर मिट्टी के पात्र में केसर रंग का अक्षत रहता है । जिसका भाव यह होता है कि परमात्मा यहां अवतरित होकर अविनाशी आत्मा एवं पंच तत्वों की प्रवृत्ति को शुद्ध करें ।
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