राजद शासन काल में अतिपिछड़ा आरक्षण पर ग्रहण, लालू कभी नही चाहे है कि अतिपिछड़े को मिले आरक्षण:- आनंद कुमार चंद्रवंशी
पटना हाई कोर्ट द्वारा बिहार के नगर निकाय चुनाव में अतिपिछड़ा आरक्षण को समाप्त कर चुनाव कराने का निर्देश दुर्भाग्य पूर्ण है। लेकीन यह राजद शासन काल में ही होता आया है, आज तो नगर विकास मंत्री स्वयं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रख कर नगर निकाय चुनाव को घोषणा कर दिए ताकि कोर्ट को आधार मिल सके और अतिपिछड़े को आरक्षण समाप्त हो जाय। पहले भी लालू राबड़ी शासन काल में पटना हाई कोर्ट के सिंगल बेंच का आदेश आया था की बिहार में यदि पंचायती राज चुनाव हो तो, बिहार सरकार चाहे तो पिछड़ा वर्ग से अलग कर अतिपिछडा वर्ग को आरक्षण दे सकता है। लेकीन उस समय भी लालू राबड़ी की सरकार ने पटना हाई कोर्ट के सिंगल बेंच के आदेश को न मानकर पटना हाई कोर्ट के डबल बेंच में पुन: विचार याचिका दायर कर कहा था कि अतिपिछड़े को आरक्षण नहीं दे, पिछड़ा वर्ग के साथ में आरक्षण दिया जाय।
ऐही कारण था कि 2001के पंचायत राज और 2002 के नगर निकाय चुनाव में लालू राबड़ी के सरकार ने यह कहते हुए अतिपिछड़ा को आरक्षण नहीं दिया था कि आरक्षण का मामला पटना हाई कोर्ट में चल रहा है। यह तो 2005में पहली बार जदयू भाजपा की सरकार में नितिश कुमार और सुशील मोदी के नेत्रित्व में पटना हाई कोर्ट से लालू जी वाला पुन विचार याचिका वापस ले कर अतिपछडो को आरक्षण दिया था। और आज तेजस्वी यादव के सामने मुख्यमंत्री नितिश कुमार के कोई चारा ही नहीं है। नितिश कुमार अतिपिछड़ा आरक्षण चाहते हैं तो हिम्मत कर तत्काल नगर निकाय चुनाव को स्थगित कर 2010में दिए गए सुप्रीम कोर्ट का सुझाव को शीघ्र सुचारू करे या पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करे।
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