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1971 भारत-पाक युद्ध के समय से हमारे देश के 54 सैन्य अधिकारी पाकिस्तान के जेलो है बंद: अजीत कुमार


वैशाली: हाजीपुर 10 दिसंबर 2022
।" कहां हैं ? सन 1971 भारत-पाक युद्ध के 54 भारतीय युद्ध बंदी "जैसी संवेदनशील ज्वलंत मुद्दा को लेकर आज अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर प्रो( डॉ )अजीत कुमार सचिव ,स्वामी विवेकानंद सामाजिक संस्थान ने युद्ध बंदियों की रिहाई के लिए प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम प्रेषित एक ज्ञापन विनोद कुमार सिंह अपर जिला पदाधिकारी वैशाली को सौंपा।

            डॉ अजीत कुमार ने राष्ट्रपति को 54 भारतीय सैन्य अधिकारी की पीड़ को स्मार पत्र में उल्लेख करते हुए बताया है कि पाक के लखपत कोर्ट जेल में बंद भारतीय युद्ध बंदि सैन्य अधिकारीयो की दर्दनाक पीड़ा उल्लेख किया है। स्मार पत्र में डॉ अजीत कुमार ने बताया है कि वर्ष 1971 भारत-पाक युद्ध के समय से हमारे देश के 54 सैन्य अधिकारी पाकिस्तान के जेलो में कैद है ।यह जानकारी किसी भी हिंदुस्तानी को पूर्णता व्यथित कर देने के लिए काफी है। इस संबंध में अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल जगदीश अरोड़ा तथा अवकाश प्राप्त एयर मार्शल एम एस की पीड़ा भी प्रत्यक्ष हुई है। राष्ट्रपति से गुहार लगाते हुए बताया गया है कि किस तरह से भारतीय युद्ध बंदी को यातना दी जाती है ।स्मार्ट पत्र में उद्धृत किया गया है कि "मेरे बगल के वार्ड में 50 के लगभग युद्ध बंदी रखे गये हैं । पूरी रात इनके कराहने ,रोने को मैं कभी भूल नहीं सकता "

यह उस पत्र के अंश है ,जिसे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने वकील और जेल अधीक्षक को लिखा था। इसकी चर्चा भुट्टो ट्रायल एंड एक्सकयुशन पुस्तक में है ‌।इसकी लेखिका बीबीसी की संवाददाता विक्टोरिया स्काफिल्ड है ।तब भुट्टो लाहौर के कोट लखपत जेल में बंद थे ।इन कैदियों के रोने ,बिलखने व कराहने से भुट्टो सो नहीं पाते थे ।क्योंकि जेल में बंद भारतीय युद्ध बंदियों को तरह-तरह कि मानवीय यातना दी जा रही थी । जब भुट्टो के वकील ने जेल अधिकारियों से पूछा, तो पता चला कि ये सन 1971 भारतीय युद्ध बंदी हैं। इन्हें कुछ भी याद नहीं।,,,

विगत 50 वर्षों से हमारे सैनिकों ने जो यातना झेली है। उसकी कल्पना मात्र से पत्थर का दिल भी दहल जाता है, और पूरे शरीर में कंपन पैदा हो जाती है।

सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि इन युद्ध बंदियों को केवल यातना ही नहीं दी जाती है। बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीव जंतु के ऊपर रोक लगे रासायनिक प्रयोग , परीक्षण एवं कई खतरनाक वैज्ञानिक शोध भी इनके ऊपर पाकिस्तानी हुकूमत से के द्वारा की जा रही है। 

1971 के युद्ध के हम विजेता बन गए। जश्न मनाए ,पीठ थपथपाई भारतीय सैनिकों द्वारा आत्मसमर्पण कराए गए 94000 पाकिस्तानी युद्ध बंदियों को हम रिहा कर दिए। लेकिन अपने इन बहादुर सैनिकों की याद नहीं आई। जो 50 वर्षों से जिल्लत की जिंदगी जी रहे हैं । 54 भारतीय सैनिक पांच दशकों से आखिर किस अपराध की सजा भुगत रही है? क्या देश की रक्षा करना ,उम्र कैद से भी घृणित अपराध है। अगर नहीं तो भारत सरकार उनकी रिहाई की दिशा में आंखें मूंदे क्यों बैठी है? भारतीय सैनिक अधिकारियों की रिहाई के लिए सरकारी स्तर पर कोई उपाय नहीं ढूंढ पाना किसी भी देश और समाज के लिए इससे बढ़कर आश्चर्य एवं शर्मनाक बातें क्या हो सकती है ? प्रत्येक भारतवासीयों को इसके लिए काफी दर्द, वेदना और आक्रोश है।

        अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दिवसपर 12 सदस्यी प्रतिनिधि मंडल जिसमें प्रो (डॉ) अजीत कुमार , रंजीत कुमार पांडे, अमरेंद्र कुमार सिंह अधिवक्ता ,राजीव रंजन सिंह उर्फ चंदन कुशवाहा ,आकाश आनंद छात्र नेता , कृष्णा सिंह , प्रो गौतम कुमार सिन्हा , आयुष कुमार, लक्की सिंह अधिवक्ता , शुभम मिश्रा ऋषि राज सरण एवं अरुण पासवान ने जिलाधिकारी से मिलकर ज्ञापन सौंपा।

      ज्ञापन सौंपने के पश्चात कचहरी मैदान में एक सभा की गई। जिसकी अध्यक्षता प्रो (डॉ )अजीत कुमार ने किया जबकि संचालन आकाश आनंद छात्र नेता ने की।

 सभा को संबोधित करते हुए रंजीत कुमार पांडे ने बताया कि युद्ध बंदियों के परिवार वालों को ना तो मरणोपरांत की कोई सुविधा दी जा रही है, ना अवकाश प्राप्त पेंशन और नहीं जीवित रहने का वेतनमान आदि की सुविधाएं मिल रही है। इन्हें अपने किस्मत एवं भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।

राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम भेजे गए पत्र में डॉ अजीत कुमार ने यह मामला बखूबी उठाया और सरकार से पूछा है कि 1971 के "54 युद्ध बंदियों को आसमान खा गया गई या धरती निकल गई" जिसकी अभी तक कोई जानकारी हम भारतवासियों को नहीं दिया गया है । न ही इन सैनिकों को ढूंढने का कोई सार्थक प्रयास किया गया है।

         स्वामी विवेकानंद सामाजिक शोध संस्थान वैशाली बिहार के सचिव विगत 22 वर्षों से इस संवेदनशील मुद्दा के लिए संघर्षरत है । अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर स्वामी विवेकानंद सामाजिक शोध संस्थान बिहार ने इस मामला को राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री ,अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जेनेवा को पत्र लिखकर इन भारतीय युद्ध बंदी को अभिलंब रिहा करने की गुजारिश कि है।

              ज्ञापन में डॉक्टर अजीत कुमार ने आग्रह के साथ कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहां है कि मैं अपना इरादा आपके सामने पूरी साफगोई के साथ रखना चाहेंगे कि अगर भारतीय युद्ध बंदियों को रिहाई की दिशा में निर्णायक कदम नहीं उठाया गया तो हम सरहद लांघ कर ,उन जेलों जय तक पहुंचने के साथअपने भाइयों को आजाद कराने या फिर अपने आप को उनकी रिहाई की मांग की बलिवेदी पर खाकर देने के लिए विवश होंगे ।

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