बेनीपुरी साहित्य हिन्दी साधकों के लिए संस्कारशाला है: डा.सुधांशु कुमार
सोनो जमुई संवाददाता चंद्रदेव बरनवाल की रिपोर्ट
क्रान्ति और कलम के साधक रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्य संपूर्ण हिंदी साधकों के लिए संस्कारशाला है । उनकी लेखनी ने भारतेंदु युगी विधाओं को एक नया कलेवर , नयी दिशा दी । उन्हें कलम का जादूगर कहा गया । उनका साहित्य एक ऐसा संग्रहालय है जिसमें हम अपने अतीत से साक्षात्कार कर सकते हैं , वर्तमान को संवार सकते हैं और भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं क्योंकि वे आत्मा के शिल्पी हैं । उक्त बातें कलम के जादुगर रामवृक्ष बेनीपुरी की जयंती के अवसर पर सिमुलतला आवासीय विद्यालय में महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए अतिथि वक्ता व व्यंग्यकार डा० सुधांशु कुमार ने कही ।
उन्होंने कहा कि बेनीपुरी जितने बड़े साहित्यकार थे उतने ही बड़े क्रांतिकारी भी । साथ ही अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में विद्यालय के उप प्राचार्य व शैक्षणिक प्रमुख डॉ सुनील कुमार ने उन्हें हिन्दी साहित्य का सिरमौर बताते हुए कहा कि उनका साहित्य आत्मा से संवाद करता है । शिक्षक डा० जयंत कुमार ने उनकी कृतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अम्बपाली , माटी की मूरतें , पतितों के देश में , कैदी की पत्नी , गांधीनामा सहित शताधिक कृतियों का सृजन किया , जो काल के कपाल पर विराट हस्ताक्षर है । डा० प्रवीण कुमार सिन्हा ने कहा कि अंबपाली के माध्यम से उन्होंने स्वातंत्र्य चेतना को हवा दी वहीं माटी की मूरतें के माध्यम से बिहार के ग्राम्य जीवन को आकार दिया । ज्ञात हो कि रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23.12.1899 ई० को बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के बेनीपुर गांव के गरीब किसान परिवार में हुआ । यह गांव राम इकबाल सिंह राकेश के गांव भदई से तीन किलोमीटर उत्तर बागमती नदी के तट पर अवस्थित है । उनके माता - पिता बचपन में ही चल बसे । ननिहाल में पालन पोषण हुआ ।
वर्ष 1919 के जलियावाला बाग के नृशंस हत्याकांड के विरोध में गांधी जी द्वारा आयोजित आंदोलन में कूद पड़े , तबसे पीछे मुड़कर नहीं देखा । पच्चीस वर्षों के संघर्ष में चौदह बार जेल गये । साढे सात साल जेल में रहे । जेल में ही डा० राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण जैसे क्रांतिकारियों से घनिष्ठता हुई । एक दर्जन पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया । इसी बीच पुत्र गांधी सहित कई परिजनों को खोया ।
जगदीश चंद्र माथुर को लिखे एक पत्र में उन्होंने अपनी वेदना प्रकट की , यदि हनुमान की तरह छाती चीरकर देखा जा सकता तो लोग मेरे हृदय पर लगी चोट और रिसते घावों को देखकर रोते । राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने उनके संबंध में लिखा कि नाम भले ही मेरा दिनकर है किंतु सूर्य तो बेनीपुरी जी ही हैं । इस अवसर पर राम इकबाल सिंह परिषद के तत्वावधान में छात्रों के बीच श्रुति लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें सर्वाधिक उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवाले छात्रों को पुरस्कृत किया गया । पुरस्कृत होने वाले छात्रों में प्रियांशी गुप्ता , शांतनु कुमार , लव शर्मा , अंशिका कुमारी , ऋषु राज , समीर रंजन व कृष्णा प्रमुख थे । इस अवसर पर कुमारी नीतू , वर्षा कुमारी, गोपाल ठाकुर, राजेश रंजन, विनोद कुमार यादव, मुकेश कुमार पांडेय, बालकृष्ण तिवारी, प्रज्ञेश वाजपेई एवं नयन तिवारी सहित अन्य शिक्षक शिक्षिकाएँ भी उपस्थित थी । धन्यवाद ज्ञापन मुकेश कुमार पांडेय ने किया ।
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