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भारतीय आदिवासियों का एक व दो जनवरी काल दिवश: पी हेंम्ब्रम


सोनो जमुई संवाददाता चंद्रदेव बरनवाल की रिपोर्ट

स्वतंत्र भारत में एक जनवरी 1948 को खारसांव गोलीकांड की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की जाती है 

 एक जनवरी 1948 को जब आजाद भारत अपने पहले नए साल की जश्न मना रहा था , तब बिहार का खहरसावां जो अब झारखंड में है , आदिवासी समाज अपनी हक , अधिकार , जल , जंगल और जमीन एवं विशेष राज्य की मांग के लिए एक सामुहिक बैठक कर रहे थे , तभी अचानक ओडिशा सरकार और केंद्र सरकार की पुलिस ने आदिवासियों पर अन्धाधुंध गोलियां बरसाई थी , जिसमें तकरीबन 50 हजार आदिवासियों की हत्या हो गई थी , जब कि जलियांवाला बाग में पांच हजार लोगों की हत्या की गई थी । उक्त बातें समाजिक कार्यकर्ता सह आदिवासी नेता श्री पृथ्वीराज हेमब्रम ने कही । उन्होंने कहा कि झारखण्ड अलग राज्य की मांग 1935 ई० से ही शुरू हो गई थी ।

इस आंदोलन के सूत्रधार मांगू और सोय थे । आंदोलन के लिए आयोजित बैठक ओर किया गया रैली में मरंग गोमके एवं जयपाल सिंह मुंडा भी शामिल हुए थे । इस हत्याकांड में हजारों बच्चों कि भी हत्या हुई थी । खारसांवा गोलीकांड आजाद भारत के इतिहास में निंदनीय एवं सबसे बडी हत्याकांड रही है , अंग्रेजों ने भी इतनी बड़ी हत्या कांड को अंजाम नही दिया । जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला तो उधम सिंह ने लिया । लेकिन हम अपने पुरखों की हत्या और शहादत के दिन खुशी मनायें यह हमे शोभा नहीं देता है । उन्होंने भारत की आदिवासियों को एक और दो जनवरी को अंग्रेजी नव वर्ष नहीं मनाकर काला दिवस मनाने का आग्रह किया है ।

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