भोजपुरी संस्कृति और भाषा को बचाना हम सब का कर्तव्य है: एंकर आकाश बाबा
रिपोर्ट चारोंधाम मिश्रा दावथ (रोहतास)
जब हम भोजपुरी की बात करते हैं तो उसका हिस्सा सभी धर्म जाति और भोजपुरी समाज के लोग हैं अतः भोजपुरी संस्कृति को बचाना उन सभी लोगों की जिम्मेदारी है जो खुद को भोजपुरी भाषा से ताल्लुक रखते हैं, किसी भी समाज के भीतर एक पारिवारिक व्यवस्था रहती है।
जहां बातचीत का स्तर काफी शालीन रहता है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी जैसे संबधों से युक्त कुटुंब के बीच भाषा बिल्कुल निर्धारित होती है। प्रेमी-प्रेमिका के बीच भी आम जीवन में संवाद ऐसा नहीं होता, जैसी बातचीत फैशन में आए भोजपुरी गानों में सुनने को मिलती है। इसमें प्रेम कम कामुकता ज्यादा झलकती है। यही कारण है कि आजकल हम लोग अपने बच्चों को भोजपुरी भाषा से दूर रखते हैं। यह बातें बिहार के प्रसिद्ध एंकर आकाश बाबा ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा। आगे उन्होंने कहा की आखिर इसकी ऐसी छवि क्यों बन गई? क्यों दूसरे भाषा-भाषी के साथ खुद भोजपुरी समाज भी अपने बच्चों के सामने इस भाषा में बात नहीं करता? तमाम ऐसे सवाल हैं जो किसी भी गैर-भोजपुरी व्यक्ति के मन में चलते रहते हैं। भोजपुरी भाषा का एक समृद्व इतिहास है। यहां भिखारी ठाकुर ऐसी शख्सियत रही हैं, जो इस भाषा के शेक्सपियर भी माने जाते हैं और जिन्होंने महिलाओं की समस्याओं पर विशेष लेखन किया है। आज गीतों में द्विअर्थी बोलों के चलते भोजपुरी मशहूर होने के साथ बदनाम भी हुई है। जबकि वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है।दरअसल, भोजपुरी गीत आज अपनी सरलता या सहजता के बजाय द्विअर्थी बोलों की वजह से ज्यादा चलन में है। जबकि भोजपुरी गीतों की एक समृद्ध विरासत रही है।जिनकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है।
बोली और भाषा समाज के व्यवहार को दिखाती है।
भाषाविदों का मानना है कि भौगोलिक, आर्थिक कारक भी समाज के निर्माण में महती भूमिका निभाते हैं। इन कारकों के चलते भाषाओं के भीतर अक्खड़पन, सरलता, सहृदयता परिलक्षित होती है। आज के परिवेश में भोजपुरी समाज का अधिकतर हिस्सा अपने मूल स्थान से आजीविका के चलते दूर है। लिहाजा वह सामाजिक संस्कारों के दवाब से मुक्त हो गया है।
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