हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया बाबा तिलका मांझी की 273 वां जयंती
सोनो जमुई संवाददाता चंद्रदेव बरनवाल की रिपोर्ट
तिलका मांझी चोक बामदह में बाबा तिलका मांझी की 273 वां जयंती हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया । मौके पर उपस्थिदास, ड़ी संख्या में लोगों ने बाबा तिलका मांझी के तेल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया । झामुमो नेता पृथ्वीराज हेमब्रम सह पौलुस हैमब्रम के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को बाबा तिलका मांझी की जन्म एवं उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला गया । पृथ्वीराज हेमब्रम ने बाबा तिलका मांझी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए अपने संबोधन में कहा कि बाबा तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 ईस्वी को मुल निवासी संथाल जनजाति में राजमहल के तिलकपुर नामक गांव में हुआ था । इनके पिता का नाम सुंदरा मुर्मू था एवं उनके माता का नाम सोमी मुर्मू थी । जबरा पहाड़िया नाम से प्रसिद्ध बाबा तिलका मांझी का नाम उन्हें ब्रिटिश सरकार के द्वारा दिया गया था ।
पहाड़िया भाषा में तिलका का अर्थ है गुस्सेल ओर लाल आंखों वाला व्यक्ति। वे ग्राम प्रधान भी थे जिस कारण उन्हें प्रथा के अनुसार मांझी कहा जाता था । श्री हेम्ब्रम ने आगे कहा कि बाबा तिलका मांझी भारत की इतिहास में पहला ओर दुनिया की इतिहास में दुसरा क्रांतिकारी व्यक्ति थे । उन्होंने मात्र 29 वर्ष की आयु में सन 1779 में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की 10 वर्षिय कृषि ठेकेदारी की आर्थिक लुट एवं शौसनकारी व्यवस्था लागु करने , फुट डालो और राज करो की नितियों , आदिवासियों और किसानों के साथ किये जा रहे सुदखोरी , महाजनी शौसन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था । उन्होंने पहाड़िया एवं संथाल जन जातियों की विद्रोहों एवं आंदोलनों को कुचलने की अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों और कार्यों के खिलाफ मुल निवासी किसानों को संगठित कर हुल विद्रोह का नेतृत्व किया था ।
श्री हेम्ब्रम ने आगे कहा कि सन 1780 ईस्वी में उनके द्वारा सभी संथाल एवं पहाड़िया जाति के लोगों को पेड़ों की छाल लपेटकर गांवों में भेजा गया और उन्हें विद्रोह करने के लिए आमंत्रित किया गया था । जिस कारण उनके नेतृत्व में आदिवासियों और किसानों में एकता बनीं थी और संघर्षों का दौर शुरू हुआ था । सन 1784 तक राजमहल , भागलपुर एवं खड़गपुर से मुंगेर तक जगह जगह उनके ही नेतृत्व में अंग्रेजों की सेना के साथ भीषण युद्ध हुआ था । उन्होंने इस बीर पुरुषों को भारत के किसी भी पन्नों में जगह नहीं मिलने पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि कुछ तथाकथित विद्वानों ने अंग्रेजों के वफादार एवं हिल कापर्स पहाड़िया सैनिक बल के सैनापति जबड़ा पहाड़िया को ही घोषित कर दिया ओर उनके गौरवशाली इतिहास को विवादास्पद बनाने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ी । उन्होंने आगे कहा कि भारत के सभी आदिवासियों को एक मंच पर आना होगा तभी समस्त आदिवासी समुदाय का विकास संभव है ।
बिहार प्रदेश में आदिवासी समुदाय को 7 प्रतिशत आरक्षण पाने के लिए सभी आदिवासियों को एक राजनीतिक शक्ति और समाजिक एकता का निर्माण करना होगा । जयंती समारोह में झामुमो नेता पृथ्वीराज हेमब्रम सह पौलुस दा के साथ रंगीनियां गांव निवासी महेंद्र दास सोनो निवासी गिरधारी दास एवं भोला लाहाकार , मधुपुर के सुधीर दास के अलावा मोतीलाल हांशदा , शिबलाल हेमब्रम , सुशील हांसदा , रोहित पासवान , संतोष साव , उपेंद्र दास , राजेंद्र दास , विकास यादव , राजु यादव , संतोष मांझी , समैल बैसरा , बीजय मुर्मू तथा विकास हेमब्रम आदि बड़ी संख्या में लोग शामिल थे ।
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