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स्‍त्री पुरुष की समानता का प्रतीक है शिव और पार्वती का साथ


रिपोर्ट चारोधाम मिश्रा दावथ रोहतास 

दावथ (रोहतास) पुरुष और प्रकृति की समानता से होता है संसार में संतुलन पुरुष और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित होने से ही सृष्टि सुचारु रूप से चल पाती है। शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग का यही मन्तव्य है। शिव पुरुष के प्रतीक हैं, तो पार्वती प्रकृति की। पुरुष और प्रकृति के बीच यदि संतुलन न हो, तो सृष्टि का कोई भी कार्य भलीभांति संपन्न नहीं हो सकता है। शिवलिंग के माध्यम से शिवजी अपने भक्तों को यही संदेश देते हैं। देवघर के बाबा वैद्यनाथधाम मंदिर के अलावा, दक्षिण भारत में भी शिव तथा शक्ति का विवाह कराया जाता है। विवाह से पहले दोनों को अपने मन के मालिक के रूप में दिखाया जाता है। जहां शिव अपना भिक्षु रूप, तो शक्ति अपना भैरवी रूप त्याग कर समान घरेलू रूप धारण करती हैं। इस प्रकार भैरवी ललिता, तो शिव शंकर बन जाते हैं। इस वैवाहिक संबंध में न कोई विजेता है और न कोई विजित है। दोनों का एक-दूसरे पर संपूर्ण अधिकार है, जिसे प्रेम कहते हैं।


शिव मानते हैं कि प्रत्येक स्त्री-पुरुष का अपना स्वतंत्र ब्रह्मांड अर्थात आत्मपरक सत्ता होती है। संसार की ओर देखने और व्यवहार करने का अपना-अपना अलग ढंग होता है, इसलिए उनके मनोभावों को समझना बेहद जरूरी है। एक मान्यता के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के बाद शिव के एक अनुयायी भृंगी ने उनकी प्रदक्षिणा करने की इच्छा व्यक्त की। शिव ने कहा कि आपको शक्ति की भी प्रदक्षिणा करनी होगी, क्योंकि उनके बिना मैं अधूरा हूं। भृंगी इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। वे देव और देवी के बीच प्रवेश करने का प्रयत्न करते हैं। इस पर देवी शिव की जंघा पर बैठ जाती हैं, जिससे वे यह काम न कर सकें। भृंगी भौंरे का रूप धारण कर उन दोनों की गर्दन के बीच से गुजर कर शिव की परिक्रमा पूरी करना चाहते हैं। तब शिव ने अपना शरीर शक्ति के शरीर के साथ जोड़ लिया। अब वे अ‌र्द्धनारीश्वर बन गए। ऐसे देवता, जिनका आधा शरीर स्त्री का है। अब भृंगी दोनों के बीच से नहीं गुजर सकते थे। शक्ति को अपने शरीर का आधा भाग बनाकर शिव कहते हैं कि वास्तव में स्त्री की शक्ति को स्वीकार किए बिना पुरुष पूर्ण नहीं हो सकता। शिव की भी प्राप्ति नहीं हो सकती। देवी के माध्यम से ही शिव की प्राप्ति की जा सकती है। प्रकृति के सहयोग के बिना न कल्पना का महत्व है और न इससे उदय होने वाले ज्ञान का। संसार को चलाने के लिए ज्ञान का महत्व है।

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