पत्रकारिता के क्षेत्र में डीपीआरओ कि नहीं है आवश्यकता
✍️ वीरेंद्र चंद्रवंशी
आज पत्रकारिता के क्षेत्र में ज्यादातर युवा अपना कैरियर बनाना चाहते हैं लेकिन कोई डिग्री और कोर्स ना होने के कारण उनके सामने सबसे बड़ी समस्या रहती है कि वे फील्ड में काम करके भी लीगल पत्रकार नहीं बन पाते । जिसके कारण पोर्टल में या डिजिटल मीडिया क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांशत पत्रकार और ब्यूरो चीफ प्रशासन एवं सरकारी कार्यालय को साझा करने से डरते हैं । जब के ऐसा उनका केवल एक विचार है वास्तविकता तो यह है कि डीपीआरओ केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में सूचना देने का काम करती है ना कि किसी पत्रकार को लाइसेंस देने का काम करती है ।
अगर किसी पत्रकार के पास डीपीआरओ प्रमाण पत्र किसी न्यूज़ संस्था से है तो वह लाइसेंस नहीं है इस बात को ध्यान रखें ...
इन सभी बातों को ढंग से समझने के लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि पत्रकारिता और जन सूचना है क्या ?
★ तो आइए जानते हैं इस लेख में कि लीगल पत्रकार कैसे बने ।
क्या है पत्रकारिता ?
मानव बचपन से ही अपने मानसिक वृद्धि होने का साथ ही सूचनाओं का आदान प्रदान करना शुरू कर देता है । और अपने आस-पास अपनी देश दुनिया,घटना, कालक्रम व विशेष व्यक्तियों की स्थिति और उनके बारे में जाने का प्रयास करता है । इन्हीं भावनाओं से पत्रकारिता अर्थात पत्राचार का जन्म होता है । लेकिन पत्र और अखबार में विभिन्नता केवल एक शब्द से उत्पन्न होती है और वह शब्द है निष्पक्षता । क्योंकि घटना का व्याख्या अगर कोई निजी रूप से पत्र के रूप में करता है तो वह पत्रकारिता नहीं है वह केवल एक संदेश है । लेकिन घटना निष्पक्ष होकर लिखना और दूसरों को संदेश देना पत्रकारिता है । इस दौरान लेखक के ऊपर भी कुछ नियम और कुछ दायित्व लागू होते हैं जैसे लेखक को निष्पक्ष होने के साथ-साथ निर्भीक और ईमानदार होना जरूरी है ताकि घटना को किसी प्रलोभन या भय में ना लिखा जाए ।
निजता नही है पत्रकारिता ।
किसी के पक्ष में या निजता ने लिखा जाने वाला कोई भी विषय कोई भी लेख पत्रकारिता से संबंधित नहीं है । धर्म, जाति, भाषा, रुपए पैसे या किसी भय या किसी भी प्रलोभन में किया गया पत्रलेखन पत्रकारिता नहीं है ।
राष्ट्रवाद का आग है पत्रकारिता ?
वैसे पत्रकारिता के कई परिभाषाएं हैं लेकिन सबका मूल केवल यही है कि राष्ट्रवादी भावना को निरंतर बनाए रखने और राष्ट्रहित में कार्य करने और लेखन करने को पत्रकारिता कहते हैं । लोगों को दिन,दिवस,महोत्सव, पर्व-त्यौहार घटना कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाना और संवैधानिक नियमों, सरकारी योजनाओं, सरकारी रहनुमाओं के कार्य एवं धार्मिक कुरीतियों को दूर कर देश के हर एक नागरिक में राष्ट्रवादी भावना को उदयीमान रखना पत्रकारिता है ।
कहां मिलेगा लाइसेंस ?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि लाइसेंस केवल निजी कार्यों में बनाए जाते हैं सामाजिक और स्वतंत्र अधिकारियों में नहीं । सामाजिक और स्वतंत्र कार्यों में प्रमाण पत्र लागू होते हैं ।
जैसा कि आप सभी जानते होंगे की किसी भी पार्टी के सदस्यों या अधिकारियों की नियुक्ति वरीय अधिकारी/नेता या अध्यक्ष के द्वारा लेटर पैड पर उद्घोषक किया जाता है कि हमने अमुक नाम के व्यक्ति को अमुक पद पर नियुक्त किया है । इसमें लाइसेंस केवल पार्टी का है लेटर पैड का नहीं । और अब आप लाइसेंसी इसलिए हो गए क्योंकि आप एक मान्यता प्राप्त संस्था के साथ हैं । निजी काम वकील करते है डॉक्टर करते हैं जिनका अपना लाइसेंस होता है । लेकिन मुंशी, ताईद, कंपाउंडर का कोई लाइसेंस भी होता है क्या ? नही न । इनको भी लेटर पैड से नियुक्त किया जाता है ।
2017 से दैनिक जागरण और हिंदुस्तान अखबार ने नहीं दिया है किसी को कार्ड ।
सभी को जानने की जरूरत यह है कि 2017 से कुछ खास में लोगों को दैनिक जागरण या हिंदुस्तान जैसे बड़े बैनर ने कार्ड दिया हो । इन 5 वर्षों में सैकड़ों पत्रकार विभिन्न जिला एवं राज्यों से जुड़े होंगे और हटे होंगे । तो क्या प्रशासन उनको फर्जी कहेगा नही न ।
क्यों क्योंकि यह संयोगिता पर सरकार किसी व्यक्ति को नौकरी देता है उसी योग्यता पर अखबार या पोर्टल किसी को अपने यहां लिखने का आदेश देता है तो फिर इसमें लाइसेंस का बात कहां ?
तो DPRO क्या है ?
पूरे 1 जिला में विभिन्न तरह के कार्यालय होते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के सरकारी काम बैठक और किया जाता है । जिसे जिला जन सूचना विभाग द्वारा जिला पदाधिकारी के निर्देश पर किए गए कार्यक्रम की सूचना मीडिया संचार केंद्रों को दिया जाता है ।
जिस समय में मोबाइल नहीं था उस टाइम में अखबार में लिखने वाले पत्रकार डीपीआरओ कार्यालय में जाकर रजिस्टर पर अपना नाम दर्ज करवाते थे जिला जन सूचना के डीपीआरओ ग्रुप में अपना नंबर जोड़ कर चले जाते हैं ।
पत्रकारिता बना बाजार ?
सोशल मीडिया के आने के बाद पत्रकारिता लोग बाजार बनाकर रख दिए हैं । छोटे से लाभ के लिए हर कोई यूट्यूब बनाकर न्यूज़ डाल रहा है जो कि पत्रकारिता के साथ खिलवाड़ है । ऐसे में अपने आप को बहुत बड़ा मीडिया एजेंसी बताकर नियुक्ति पत्र के ऊपर डीपीआरओ लेटर लेकर संवाददाता को दे देते हैं जरा सोचिए जो व्यक्ति किसी समस्या अभाव में मास कम्युनिकेशन नहीं कर सका उसके लिए तो नियुक्ति पत्र के ऊपर डीपीआरओ लिखा हुआ अक्षर ही लाइसेंस लगेगा ना । डीपीआरओ लेटर कुछ होता नहीं है एक नियुक्ति पत्र होती है जिसे जाकर जिला जन सूचना में जमा करना होता है ।
अगर आपके पहचान जिला जन सूचना पदाधिकारी से है तो बिना किसी वार्ता के ऐसे भी आपको उस यूनियन से जोड़ दिया जा सकता है । जिन्हें फिलहाल समस्या हो रही है सीधा डीपीआरओ कार्यालय में जाकर जिला जन सूचना पदाधिकारी से हमारी बात करवाएं ।
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