शाकद्वीपीय ब्राह्मण गौरव इतिहास स्वर्णमय, सूर्य का करते हैं उपासना
शाकद्वीपीय ब्राह्मण गौरव इतिहास स्वर्णमय है। शाकद्वीपीय ब्राह्मण सूर्य का करते हैं उपासना
रिपोर्ट चारोधाम मिश्रा दावथ रोहतास
सनातन कथा के अनुशार स्वयम्भुव मनु के दो पुत्र हुए प्रियव्रत और उत्तानपाद। प्रियव्रत बड़े पुत्र थे।
प्रियव्रत का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मति से हुआ। इनसे दस पुत्र और एक कन्या का जन्म हुवा। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से तीन पुत्रों का जन्म हुआ था।
कहते हैं कि जब प्रियव्रत को पता चला कि सूर्य पृथ्वी के सिर्फ आधे भाग को ही प्रकाशित करता है, तो उन्होंने बाकि भूभाग को भी प्रकाशमान करने की मनोवृति लिए ज्योर्तिमय रथ पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा की।
इस तरह रथ के पहियों से जो लीक बना वे सात समुद्र बने तथा उससे संलग्न भूभाग सप्तद्वीप कहलाये।
सातो द्वीप जिनका नाम जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौञ्च, शाक और पुष्कर था, क्रमशः क्षार, इक्षुरस, मदिरा, घी, दूध, दधि और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे थे ।
विभिन्न पुराणों में वर्णित इन सात द्वीपों में से जम्बूद्वीप में आज का भारतवर्ष आता है जबकि शाकद्वीप का सम्बन्ध आज के भारत में बसे हम शाकद्वीपीय ब्राह्मणों से है।
शाकद्वीप कहाँ स्थित है?
कुछ आधुनिक विद्वानों के मतानुशार मध्य एशिया, पहले शकद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था। यूनानी इस देश को ‘सीरिया’ कहते थे। उसी मध्य एशिया में रहनेवालों को शाक अथवा शक कहा जाता था।
एक समय यहाँ रहने वाले लोग बड़े प्रतापशाली थे। ये लोग अपने आपको देवपुत्र मानते थे।
भारत में प्रस्थिपित होने के पश्चात अपने यश और प्रताप के बदौलत इन्होने यहाँ भी अपना दबदबा कायम कर लिया था। इनलोगों ने करीब 200 वर्ष तक भारत में एकछत्र राज्य किया । कनिष्क और हविष्क नाम के इनके बड़े बड़े प्रतापशाली राजा हुए हैं।
वैदिक काल में शक प्राचीन आर्यों के सम्बन्धी रहे हैं।
भारत में प्रचलित शक संवत जो आज भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है, बहुत प्राचीन है। इसका संबंद्ध इन्ही शको से निकाला जाता है। 78 ई. पूर्व इस संवत को कुषाण राजा ‘कनिष्क महान’ ने प्रराम्ब्भ किया था। उन्होंने इसे अपने राज्य आरोहण की तिथि को एक उत्सव के रूप में मानाने तथा इसे यादगार बनाने के लिए शुरू किया था।
शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास की गौरव गाथा
पुराणों में शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि शाकद्वीप के शासक प्रियव्रत के पुत्र मेधातिथि थे। कहा जाता है कि इन द्वीपों के अलग अलग वर्ण, उपद्वीप, पर्वत, सागर, इष्टदेव, नदियाँ तथा शासक हुए।
शाकद्वीप में सात उपद्वीप बने थे। जिनका नाम क्रमश: पुरोजव, मनोजव, पवमान, धुम्रानीक, चित्ररेफ, बहुरूप और चित्रधार पड़ा। इन उपद्वीपों का नाम मेधातिथि से जो पुत्र हुए, उन पुत्रों के नाम पर ही रखा गया था। मेधातिथि के पुत्रों ने इन उपद्वीपों पर हजारों वर्षों तक राज किया।
शाकद्वीप की जातियाँ (वर्ण) ऋतव्रत, सत्यव्रत, दानव्रत तथा अनुव्रत के नाम से जानी जाती थी तथा इनके इष्टदेव श्रीहरि को माना गया।
शाकद्वीप पर शाक नामक वृक्ष बहुतयात में पाए जाते थे, जिसकी मनोहर सुगंध पूरे द्वीप में छाई रहती थी। संभवतया इन शाक के वृक्ष के नाम से ही इस द्वीप का नाम शाकद्वीप पड़ा हो। ऐसी मान्यता है कि भूतकाल में शाकद्वीप के वासी, बीमारियों से दूर तथा हजारों वर्षों तक जीवित रहने वाले होते थे।
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को भोजक, मग ब्राह्मण, सेवग व्यास, याजक, मागी तथा दिव्य ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है।
दिव्य शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का मुख्य पेशा पूजा-पाठ, पठन-पाठन, पुरोहिति, ज्योतिषी, आचार्य, आयुर्वेदिक् चिकित्सा करना था। इसके अलवा इनका काम कर्म काण्ड, तंत्र-मन्त्र सिद्धि तथा गीत-संगीत द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों का कार्य पालन व समापन आदि करना रहा है।
शाकद्वीपीय ब्राह्मण दिव्य कैसे ?
वेद पुराणों के अनुसार शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का उद्दभव सूर्यदेव के अंश से हुआ था। चुकि ये योनिज नहीं थे अतः दिव्य कहलाये। शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास से साफ़ पता चलता है कि ये ब्राह्मण हमेशा से ही अग्रणी सूर्योपासक रहे हैं।
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के उत्पत्ति सम्बन्धित गाथा का वर्णन नीचे दिया जा रहा है।
शाकद्वीप के राजा प्रियव्रत के पुत्र ‘मेघातिथी’ थे। उन्होंने शाकद्वीप में एक विशाल सूर्य नारायण मंदिर का निर्माण करवाया। उसमें स्वर्ण निर्मित सूर्य प्रतिमा स्थापित की गई। लेकिन उस समय शाकद्वीप में सूर्य भगवान की शास्त्र विधि से पूजा करने वाला कोई ब्राह्मण नहीं था।
मेघातिथी ने सूर्यनारायण की आराधना की। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर मेघातिथी को साक्षात् दर्शन दिए तथा वरदान मांगने को कहा, तब मेघातिथी ने सूर्य भगवान से वर मांगा कि हे भगवन्, मैंने आपका एक मंदिर बनवाया है मगर इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराने वाले तथा विधि-विधान से पूजा करने वाले कोई ब्राह्मण शाकद्वीप में नहीं है । अत: हे भगवन् अब आप ही कोई उपाय सुझाएँ।
भगवान सूर्य ने तदपरान्त मेघातिथी की प्रार्थना पर अपने तेज से अष्ट ब्राह्मण उत्पन्न किये। ये आठों सूर्यपुत्र सामगान करते हुए भगवान से प्रार्थना करने लगे कि हे परम पिता हमारे लिये क्या आज्ञा है ? भगवान सूर्य ने कहा शाकद्वीप में मेघातिथी ने मेरा विशाल मंदिर बनवाया है। तुम लोग वहां जाकर मंदिर में मेरी प्राण प्रतिष्ठा करो, मेरी पूजा-अर्चना विधी विधान से कर इनका कृत्य सुधारो तथा धर्म का प्रचार करो।
इन ब्राह्मणों ने सूर्य भगवान की आज्ञा शिरोधार्य कर मंदिर में सूर्य मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तथा सूर्य/सौर भगवान की विधि-विधान से नियमित पूजा-अर्चना करने लग गये। तभी से इन ब्राह्मणों को शाकद्वीपी ब्राह्मण के नाम से पुकारा जाने लगा।
शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास के गौरव पल
शाकद्वीपीय ब्राह्मण की विशिष्टता, श्रेष्ठता और दिव्यता का प्रमाण शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास पढने पर निम्न आशयों से भी देखने को मिलता है।
मनुस्मृति के अनुसार सूर्यास्त के पश्चात श्राद्ध कर्म निषेध है। कहते हैं कि श्राद्ध कर्म करते वक़्त सूर्य अगर अस्त हो जाए, या किसी कारण वश अगर सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना ज़रूरी हो जाए तो ऐसे में एक शाकद्वीपीय ब्राह्मण को सूर्य वरण करके श्राद्ध संपन्न किया जा सकता है क्योंकि शाकद्वीपीय ब्राह्मण में सूर्य-अंश (सूर्यांश) होता है।
शाकद्वीपी ब्राह्मणों के उत्तमता का परिचय इस प्रमाण से भी मिलता है जिसमें कहा गया है कि एक शाकद्वीपी ब्राह्णण के सम्पूर्ण शरीर में नवग्रह का वास होता है।
“शीर्षे सूर्यो विधु नेत्रि मुखे सोमो हच्पिसर्बुधः।
नाभिभिश्दे देशे गुरुश्चैव पृष्ठदेशे च भार्गवः।।
शनि जेहनुधितिश्चैव राहुकेतो पदद्वये ।
ग्रहविप्रशरीरेषु ग्रहाः स्यु: सुविराजिताः ।।”
ॐ सूर्याय नमः
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