जाति नहीं, मानव जीवन जीने की कला है हिंदू: -जीयर स्वामी
बिक्रमगंज (रोहतास)। नगर पंचायत गोड़ारी में आयोजित पांच दिवसीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के चौथे दिन गुरुवार को प्रवचन के दौरान जय स्वामी जी महाराज ने कहा कि हिंदू कोई जाति नहीं जीवन जीने की कला है। पूरा विश्व हिंदू परंपरा के अंतर्गत जीवन यापन पृथ्वी निर्माण के दौरान से ही करने के लिए प्रयासरत में है। हिं का अर्थ उन्होंने निश्चित रूप में तथा दू का अर्थ चंद्रमा अर्थ शीतलता सरलता एवं समानता का प्रतीक बताया। भगवान बुध, पैगंबर मोहम्मद एवं ईसा मसीह के काल का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि इन सभी का 3000 वर्ष के अंदर का इतिहास है परंतु हिंदू संस्कृति एवं सभ्यता 50 हजार करोड़ वर्ष पुरानी है। इसके साथ ही जीवन यापन के उद्देश्य पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जिसने हमें पृथ्वी पर भेजा है उसकी आज्ञा के अनुरूप जीवन जीना मानव का उद्देश्य है। इसके अतिरिक्त हमारी सभी चिंताएं व्यर्थ की है। मानव जीवन का उद्देश्य सिर्फ सांसारिक सुख उपभोग करना नहीं अपितु प्रभुत्व की प्राप्ति होनी चाहिए। मानवी दीवारों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जो व्यवहार स्वयं को पसंद नहीं उसे दूसरे के साथ हमें नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को अनीति के विरोध में सदैव खड़ा होना चाहिए और परोपकार के साथ अपना जीवन यापन करना चाहिए। भगवान के विभिन्न अवतारों में 2 अवतार राम एवं कृष्ण को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए उन्होंने परोपकार का उदाहरण दिया। इसके साथ ही रामायण एवं श्रीमद् भागवत महापुराण से कई उदाहरणों को स्वामी जी ने मानव के लिए प्रस्तुत किया।
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