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लैंगिक कोलाहल : एक शंखनाद


✍️डॉ. अखलाख अहमद
                                         

बिक्रमगंज (रोहतास) बिहार नारीवादी आन्दोलन के तृतीय चरण के उतरार्द्ध में आन्दोलनकारियों ने लैंगिक भेदभाव के लिए जिम्मेदार जड़बद्ध अवधारणाओं को चिन्हित करने की कोशिश की है | उनके सामूहिक प्रयास के परिणाम स्वरुप ज्ञान के तथाकथित स्थापित, रूढ़िबद्ध एवं जड़बद्ध अवधारणाओं से युक्त पूर्वाग्रह प्रकाश में लाए जा रहे हैं , जो सही मायने में विभेद की पृष्ठभूमि सृजित करने में सहायक है | दार्शनिकों ने भी माना है कि हमें ज्ञान के विश्लेष्णात्मक कौशल विकसित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम पॉकेट ज्ञान से भावी पीढ़ी को बचा सकें |

                   पाठ्य पुस्तकों को सीखने की प्रक्रिया का सर्वोत्तम साधन शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के लिए निर्विवाद रूप से माना जाता है | हमारी 75 से 95% कक्षा पाठ्यक्रम की पुस्तकों पर आधारित है | यूनेस्को रिपोर्ट के अनुसार हमारे अध्ययन की आधार सामग्री अर्थात पुस्तकों में लड़कियों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है | वैश्विक परिप्रेक्ष्य में कुछ उदहारण, यथा: मलेशिया एवं इंडोनेशिया में 44%, बांग्लादेश में 37%, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में मात्र 24% है | इतना ही नहीं पुस्तकों का गहन विश्लेषण से पता चलता है कि महिलाओं को समाज में अधीनस्थ के रूप में दर्शाया गया है , जैसे डॉक्टर के रूप में पुरुष एवं नर्स के रूप में महिलाएं, नर्तकियों एवं गृहणी के रूप में महिलाएँ इत्यादि अर्थात दोयम दर्जे के रूप में इतिहास द्वारा उन्हें चिन्हित किया गया है ,इस तथ्य की पुष्टि वैश्विक शैक्षिक निगरानी रिपोर्ट से भी होती है |

            तथ्यों की पड़ताल सामाजीकरण के सबसे सशक्त साधन, प्राथमिक विद्यालय से आरम्भ करते है| नर्सरी रैम्स ‘जैक एंड जिल’ में दोनों ही पहाड़ी पर चढ़ते है ,पानी की बाल्टी लाने के लिए | जैक गिर गया और उसका मुकुट टूट जाता है और उसके बाद जिल लड़खड़ाती हुई आई, यहाँ जैक के सर पर मुकुट का होना एवं जिल का लड़खड़ना स्वतः ही विभेद प्रदर्शित करता है | ‘मैरी हैड अ लिटिल लैम्ब’ अर्थात मेरी चूंकि लड़की है इसलिए ‘डॉग’ पेट जानवर उसके पास नहीं है ,वह तो मेमने के साथ खेलेगी | इसी तरह ‘रोजी लिप्स डिंपल चिन’ ये सब ऐसे उदहारण है जो लैंगिक विभेद के लिए कहीं न कहीं शुरूआती दौर में ही जिम्मेदार है | लिंग केन्द्रित उत्पाद यथा: किंडर जॉय एक ऐसा चॉकलेट है जो लड़कों और लडकियों के लिए अलग-अलग होता है,गुलाबी रंग कवर लड़कियों के लिए एवं इसमें खिलौना भी विशेष होता है जबकि ब्लू रंग लड़कों के कवर का होता है |

           किसी भी सभ्य समाज जिसे हम आज सिविल सोसाइटी के रूप में चिन्हित करते हैं , भाषा एवं शारीरिक भाव-भंगिमा को संस्कृति का अनिवार्य पक्ष के रूप में मान्यता प्रदान करता है | अब विभेद यहीं से दृष्टिगत है, यथा: लेडीज एंड जेंटलमैन, पुरुष यहाँ सामान्य नहीं वो तो जेंटलमैन है,जबकि महिला साधारण| सिविल सोसाइटी की भाषा का एक उदहारण यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ “एम्बेसडर्स एंड देअर वाइव्स आर इनवाईटेड” यहाँ महिला की पहचान पुरुष से जुड़ने के कारण ही है, दोयम दर्जा तो दिखता है | इतना ही नहीं कुछ भाषाई मान्यताएं : क्यों महिला की तरह रोने लगते हो, लड़कियों के बैठने का ये तरीका नहीं है, ओझा हमेशा पुरुष तो महिला सदैव डायन ही होती है | पिंक कलर महिला के लिए, मर्द को कभी दर्द नहीं होता, क्या चूड़ी पहन रखे हो ( चूड़ी कायरता का प्रतीक है ), पत्नी के सलाह पर चलनेवाला मर्द नहीं होता, गालियाँ सदा माँ,बहन की ही होती है | सोचिए किसी महफ़िल में एक महिला पुरुष के परिधान में आती है तो सशक्त एवं भद्र महिला, उसी महफ़िल में कोई मर्द लहंगा पहनने का साहस कर सकता है क्या, नहीं तो क्यों ? ये विभेद, जड़ता आखिर कब तक ढोते रहेंगे | पूजनीय नहीं आत्मीय बनाना होगा | 

     महिलाओं के लिए ‘ग्लास सिलिंग’ की अवधारणा की सत्यता से इनकार नहीं किया जा सकता | इस तथ्य की चर्चा एक बार एक महिला आईपीएस ने भी की थी | यह एक ऐसा बंधन है जो दिखता नहीं,यथा: शाम 7 बजे के बाद आप बाहर नहीं जा सकती, आपकी निगरानी होती है, पार्टी करने की सीमित छूट है | आप अपने हिसाब से कपड़े, कैरियर, जीवन साथी इतना ही नहीं गंभीर फैसलों में आपको बोलने तक से रोका जाता है,हाँ बाप की पगड़ी हमेशा लड़कियों से जुड़ी होती है, लड़के चाहे जो करे उससे तो सीना चौड़ा होता है | औरत घर की नेमत है, घर की जीनत है ऐसी ऐसी दलील देकर जड़बद्ध विचारों का समर्थन किया जाता है |

         उल्लेखनीय है कि सेक्स एक जैविक अथवा शारीरिक संरचना है | गुणसूत्रों और हार्मोन से सम्बंधित अंतर पुरुषों एवं महिलाओं के बीच सेक्स सम्बन्धी विभाजन को प्रतिबिम्बित करते है | जेंडर का जुड़ाव सामाजिक पक्ष से है,जो संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं,भूमिकाओं और व्यवहारों के साथ-साथ महिलाओं और पुरुषों के बीच संबंधों के रूप में अभिव्यक्त होता है | सभ्यता के विकास के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों में भी सकारात्मक परिवर्तन एवं अवधारणाओं का दायरा वृहत होते जाता है, इसकी व्यावहारिक परिणति है की अब लैंगिक भेदभाव में थर्ड जेंडर को भी सम्मिलित किया जाने लगा है,यह एक बड़ा बदलाव है जो बहुत ही सुखद है| आज ‘जेंडर सेन्सटाईजेसन’ में तीनों लिंग के बिच विभेद के निषेध हेतु अभिप्रेरित किया जाता है | समाज सेवियों,गैर-सरकारी संगठनों एवं न्यायिक निर्णयों के परिणाम स्वरुप थर्ड जेंडर को पहचान मिली, अब इस सन्दर्भ में संस्थागत एवं सामाजिक दायित्व है कि लोगों को जागरूक करें ताकि उन्हें भी मानवीय गरिमा का एहसास हो सके और वे समाज की मुख्य धारा से जुड़कर सामान्य जीवन यापन कर सके |   

             उपर्युक्त तथ्यों के दृष्टिगत वर्तमान नारीवादी आंदोलन से जुड़े विशेषज्ञों ने उन जड़बद्ध अवधारणाओं के विरुद्ध बदलाव के लिए शंखनाद किया है | उन लोगों ने विभेद के लिए जिम्मेदार तथ्यों को बहुत हद तक चिन्हित करने की कोशिश की है | वे सिद्ध करते हैं कि महिलाओं की भूमिका समाज में दोयम दर्जे की नहीं वरन् दोहरी है | सर्वविदित है कि पुरुष काम से घर को लौटता है जबकि महिला काम से काम को लौटती है | यह एक मार्मिक,अतिसंवेदनशील,हार्दिक एवं विचारणीय उक्ति, ज्ञान चक्षु को सत्य का साक्षात्कार कराती है | अतः अब खूब लड़ी मर्दानी की जगह खूब लड़ी जनानी के रूप में आज की झाँसी की रानियों को प्रतिबिंबित किये जाने की आवश्यकता है।

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