रिपोर्ट चारोंधाम मिश्रा दावथ (रोहतास)
श्री कृष्ण से सीखें जीवन को सफल, सार्थक और यशस्वी बनाने के गुण, कृष्ण के जीवन सूत्र ही हैं
कृष्ण ने केवल कहा नहीं, अपने शब्दों को साकार करके भी दिखाया।
जैसे गीता के रूप में उनकी वाणी अनुकरणीय है, वैसे ही उनका जीवन भी।
कृष्ण ने सिखाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं, अपने पूरे परिवेश को प्रेम से कैसे भरा जाता है और जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना मुस्कराते हुए कैसे किया जाता है।
ये बातें श्री कृष्ण मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ में प्रवचन करते हुए विनोद व्यास जी महाराज ने कहा। आगे उन्होंने कहा कि महाभारत के महानायक भगवान श्रीकृष्ण मानव इतिहास में मनुष्यता के सबसे बड़े मार्गदर्शक हैं। उनका गीता-उपदेश जीवन प्रबंधन का अनुपम ग्रंथ है और उनका व्यक्तित्व-कृतित्व गीता की साकार और प्रेरक कसौटी। यदि हम प्रयास करें तो उनके जीवन से सीख लेकर पूरी 360 डिग्री पर अपने जीवन को सफल, सार्थक और उन्हीं की भांति यशस्वी बना सकते हैं। संसार की रणभूमि में अपने जीवन की महाभारत में जय के लिए कृष्ण के जीवन सूत्र ही लक्ष्य सिद्धि के कारगर मंत्र हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम का पर्याय है। वे मां, पिता, भाई बलराम, सखा अर्जुन और गोपियों सहित प्रकृति मात्र, यहां तक कि पशु-पक्षियों से भी सदैव प्रेम करते हैं।
श्री कृष्ण सिखाते हैं,निश्छल प्रेम हर क्षण को सुख से भर देता है और पशु-पक्षियों सहित पूरे परिवेश को आनंदमय कर देता है।
श्रीकृष्ण का समूचा जीवन संकट, संघर्ष और चुनौतियों की कथा है। उनका जन्म कंस के कारागार में हुआ। जैसे-तैसे नवजात कृष्ण सुरक्षित गोकुल पहुंचाए गए मगर बड़े होने तक पूतना सहित अनेक राक्षसों ने उन पर घात लगाई। जरासंध के भय से उन्हें कुटुंब सहित मथुरा छोड़ द्वारका बसानी पड़ी। महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें उनकी इकलौती बहन सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की निर्मम हत्या हो गई। गांधारी ने कृष्ण को उनके कुलनाश का शाप दिया और कृष्ण की आंखों के सामने उनका सारा कुटुंब आपस में लड़कर मर गया। मतलब आदि से अंत तक बहुत कुछ अप्रिय व कष्टदायक घटा। बावजूद इसके कृष्ण की आंखों से कभी आंसू न निकले। हर प्रतिकूल परिस्थिति में कृष्ण सदैव मुस्कराते ही रहे। ईश्वर होकर भी साक्षी भाव से द्रष्टा बने सब स्वीकारते हुए सहज बने रहे।
श्री कृष्ण सिखाते हैं… जीवन में कितनी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, उसका मुकाबला मुस्कराते हुए ही करना चाहिए।
श्रीकृष्ण स्त्रियों को मान देने व उनकी रक्षा करने में सदैव अग्रणी हैं। श्रीमद्भागवत पुराण के रासपंचाध्यायी में निर्मल प्रेम के लिए वे गोपियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं तो जन्मदात्री मां देवकी के साथ ही पालन करने वाली यशोदा की कृपा को पल-पल सादर बखानते हैं। वे भीम को प्रेरित कर स्त्रियों को बंदी बनाए रखने वाले जरासंध का वध कराकर बंदी स्त्रियों को मुक्त कराते हैं। सखी द्रौपदी के मान की रक्षा के लिए चीर बढ़ाने का चमत्कार करते हैं तो अपने भांजे अभिमन्यु की मृत्यु के बाद उसकी विधवा उत्तरा का दुख दूर करने के लिए उसके मृत जन्मे पुत्र परीक्षित को पुनर्जीवित कर देते हैं। गुरु सांदीपनि की पत्नी की आज्ञा पर खोए हुए गुरुपुत्र को वापस लाकर ‘गुरुदक्षिणा' अर्पित करते हैं । कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोग उपस्थित थे।