मानवतावादी विश्व का एक मात्र ग्रन्थ है श्री रामचरितमानस


रिपोर्ट चारोंधाम मिश्रा दावथ (रोहतास)

यूँ तो निराकार ब्रह्म के चौबीस व मुख्य दस आकार(अवतार) वेंदों में प्राप्त होते हैं। उन सब में गोस्वामी तुलसीदास महाराज जी ने श्रीराम की मानवतावादी सोच और उस मानवतावादी सोच को आचरण में लाकर जीवन भर पालनीय देखकर मानवजाति के कल्याण के लिए रामायण को श्रीरामचरितमानस नाम दे कर समाज के सामने 450 वर्ष पहले प्रस्तुत किया। गो. तुलसी दास जी ने देखा एक राम सतयुग में हुए,जिनका नाम परशुराम है. एक राम त्रेता में हुए, जिनका नाम धनुर्धर राम है। एक राम द्वापर में हुए, जिनका नाम हलधर राम है। परन्तु तीन अवतारी मानव रामों में से त्रेता के धनुर्धर राम को उन्होंने सर्वोत्तम मानव के रूप में पाया.

सतयुग के परशुराम, भगवान् विष्णु के ही अवतार माने गए,परन्तु मानव होते हुए भी वह जातिवाद, सम्प्रदायवाद व ऊँच नीच के भेद में पड़कर रावण अर्थात अधर्म का विनाश ना कर पाए।आप ब्राह्मण कुल में पैदा हुए,पर छत्रियों से द्रोह कर बैठे। कई बार छत्रिय राजाओं का विनाश किया। आप भी शिव के शिष्य थे, और रावण भी शिव का शिष्य था.।ब्राह्मण और शिव का शिष्य होने के कारण आपने रावण को छोड़ दिया।

द्वापर के हलधर राम महाभारत के समय जब धर्म और अधर्म(कौरव और पांडव) आमने सामने होकर मानव-मानव के खून के प्यासे हो गए।उस वक़्त द्वापर के हलधर राम ने तटस्थ नीति अपनाकर तीर्थ यात्रा पर चले गए। ये दोनों राम विश्व के मानवजाती में आपस में प्रेम और सदभाव स्थापित नहीं कर सके।

त्रेता के धनुर्धर राम ना तो तटस्थ हुए और ना जाति,सम्प्रदाय के चक्कर में पड़े,आप भी भगवान् विष्णु के अवतार माने गए। आप छत्रिय कुल में पैदा हुए,पर आपने ब्राह्मणों के चरणों की पूजा की.इस तरह आपने जातिगत भेद मिटाया।भगवान् विष्णु के अवतार होकर रामेस्वरम में शिव की स्थापना की। इस तरह आपने सम्प्रदायगत भेद मिटाया. आप चक्रवर्ती राजा अर्थात पूरे पृथ्वी के राजा थे।परन्तु आपने

निषाद, सबरी, गीध, कोल, भील, संथाल, यवन आदि छोटे लोंगो को गले लगाकर ऊँच नीच का भेदभाव मिटाया।मानव को मानव से प्रेम करना सिखाया.।परिवार में सद्भाव प्रगट किया, और ग्यारह हजार वर्षों तक पृथ्वी पर प्रेम की गंगा बहाते रहे। तुलसीदास जी ने आपके चरित को विश्व के सर्वोत्तम मानव का चरित पाया। उन्होंने रामायण का नाम रामचरितमानस रख कर परम्परा बदल डाली। रामायण का अर्थ है राम+अयन अर्थात राम का घर. तुलसीदास से पहले कालीदास से बाल्मीक तक सबने राम का घर बनाया अर्थात रामायण लिखी.घर से व्यक्ति के चरित के बारे में कुछ भी नहीं जाना जा सकता,आपने राम का मानव चरित समाज के सामने प्रस्तुत किया। यदि तुलसी के राम का चरित संसार स्वीकार कर ले तो आज भी राम राज्य की स्थापना हो सकती है।

रामचरितमानस के बारे में अब्दुल खान खाना रहीम जो अकबर के नवरत्नों में से एक थे, और गो. तुलसीदास जी के समकालीन थे, जब रहीम दास जी से प्रश्न हुआ आप भी कवि हैं और तुलसीदास भी कवि है। आप दोनों में से महान कवि कौन है और रामचरितमानस के बारे में आप क्या राय रखते हैं? तो रहीमदास जी ने एक दोहा लिखा जो आज भी उनकी हस्तलिखित प्रति में प्राप्त है-

दोहा- रामचरितमानस विमल,संतन जीवन प्राण।

हिन्दू आन को वेद सम, यवनही प्रगट कुरान।।

अर्थात मनुष्य को मनुष्य धर्म सिखाने के लिए हिन्दुओं के लिए कोई वेद है तो रामचरितमानस और मुसलामानों के लिए कोई कुरान है तो वो प्रत्यछ रूप से रामचरितमानस ही है। ऐसा ही अभिप्राय उनके समकालीन सभी विद्वान और संतो का था चाहे वे किसी जाती सम्प्रदाय के थे।

आज भी श्रीरामचरितमानस डूबती हुई मानवता के लिए जहाज का कार्य कर रहा है।इसका अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, कई देशी विदेशी विदावानो के द्वारा शोध कार्य हुआ और हो रहा है।रूस जो अनीश्वर वादी देश है अर्थात भगवान् को नहीं मानता, परन्तु वंहा के विद्वानों ने रामचरितमानस पर शोध कार्य किया है और अनेक लाभ उठाया है।अर्थात श्रीरामचरितमानस किसी एक जाति, सम्प्रदाय का ना होकर सम्पूर्ण मानवता के लिए आदर्श प्रस्तुत करता है।

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